टिकट वॉर / विधानसभा ने जिन्हें उत्कृष्ट माना और सम्मान दिया भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, बगावत के आसार

रांची. झारखंड विधानसभा ने जिन विधायकों को उत्कृष्ट माना, विधानसभा में उनकी भूमिका के लिए सम्मानित किया, 2019 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट के लिए अयोग्य करार दिया। ऐसे तीन विधायक हैं जिन्हें भाजपा ने चुनावी मैदान के लिए अक्षम समझते हुए टिकट काट दिया। उनके नाम हैं हेमलाल मुर्मू, राधाकृष्ण किशोर और विमला प्रधान।


मालूम हो कि अलग राज्य के गठन के बाद से ही झारखंड विधानसभा प्रति वर्ष बेहतर भूमिका अदा करनेवाले और अच्छा काम करनेवाले विधायकों को बिरसा मुंडा उत्कृष्ट विधायक सम्मान से सम्मानित करती रही है। इसी क्रम में 2002 में हेमलाल मुर्मू, 2006 में राधाकृष्ण किशोर और 2017 में विमला प्रधान को बिरसा मुंडा उत्कृष्ट विधायक सम्मान से सम्मानित किया गया था। हेमलाल मुर्मू को जब यह सम्मान मिला था तब वह बरहेट से विधायक चुने गये थे। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने इन्हें बरहेट से टिकट दिया। लेकिन इस चुनाव में वह झामुमो के हेमंत सोरेन से हार गये। लेकिन 2019 में उनका टिकट ही कट गया।


इसी तरह 2006 में राधाकृष्ण किशोर को भी उत्कृष्ट विधायक का सम्मान मिला था। 2014 में इन्हें भी भाजपा ने टिकट दिया था और वह छतरपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते। लेकिन 2019 में बेटिकट हो गये। सिमडेगा से लगातार दो चुनाव जीत रहीं विमला प्रधान को भी 2017 में उत्कृष्ट विधायक का सम्मान हासिल हो चुका है। लेकिन 2019 में वह भी बेटिकट हो चुकी हैं।


पाकुड़: भाजपा जिलाध्यक्ष टुडू टिकट नहीं मिलने पर नाराज, पार्टी छोड़ी


पाकुड़ (संतोष कुमार). भाजपा की सूची आते ही टिकट की आस लगाए दावेदारों के बीच विरोध मुखर होने लगा है। इसी क्रम में सोमवार को भाजपा जिलाध्यक्ष देवीधन टुडू ने अपने पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। टुडू महेशपुर विधानसभा से टिकट की आस लगाए बैठे थे। इस बीच झाविमो से कुछ दिन पूर्व भाजपा में आए मिस्त्री सोरेन को महेशपुर से भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। मिस्त्री सोरेन 2009 से 2014 तक झाविमो के टिकट पर महेशपुर से विधायक रह चुके हैं। तब देवीधन टुडू पर भाजपा ने दांव खेला था। 2009 में झाविमो के मिस्त्री सोरेन ने भाजपा के देवीधन टुडू को हराया था। जबकि, 2014 में झामुमो के प्रो स्टीफन मरांडी ने देवीधन टुडू को हराया था।


कर सकते हैं खेल खराब


टिकट नहीं मिलने से नाराज देवीधन के इस्तीफा से भाजपा का खेल खराब हो सकता है। देवीधन झाविमो या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं। यदि वह चुनाव लड़ते हैं तो इसका सीधा असर भाजपा पर पड़ेगा। वहीं, जिला परिषद अध्यक्ष बाबूधन मुर्मू भी लिट्टीपाड़ा से चुनाव लड़ने के लिए टिकट की आस में थे। ऐसे में उनके बगावत करने पर भी भाजपा परेशानी में पड़ सकती है। हालांकि, बाबूधन मुर्मू ने पार्टी के साथ चलने का संकल्प दुहराया है।


पलामू: जातीय समीकरण साधने के फॉर्मूले में हलाल हो गये गिरिनाथ


पलामू (जीतेंद्र कुमार). वैसे तो बिहार-झारखंड की राजनीति में जाति अपना अलग हैसियत रखती है। जाति के नाम पर चुनाव में जीत-हार होती है। लेकिन झारखंड की भौगोलिक सीमा में पलामू ऐसा प्रमंडल है, जहां सभी जातियों को खुश रखना किसी भी दल के लिए कुछ ज्यादा ही जरूरी हो जाता है। इसी लिहाज से भाजपा के लिए भी इस बार जातीय संतुलन बनाये रखना मजबूरी बन गयी और उस मजबूरी में गिरिनाथ सिंह हलाल हो गये।


पलामू प्रमंडल में चार समुदाय प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। अगड़ी जातियों में राजपूत और ब्राह्मण के अलावा हरिजन और पिछड़े। भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार सुरक्षित सीटों पर एससी समुदाय से टिकट देना हर पार्टी की मजबूरी है। लेकिन गैर अारक्षित पांकी विधानसभा सीट से पिछड़े वर्ग से आनेवाले शशिभूषण मेहता को और विश्रामपुर से रामचंद्र चंद्रवंशी को टिकट देने के बाद अगड़ी जातियों के बीच संतुलन बनाना भाजपा के लिए मुश्किल खड़ा करने लगा।


उस परिप्रेक्ष्य में जब यह तय हुआ कि झाविमो व दूसरे दल से भाजपा में आनेवाले सभी विधायकों को टिकट मिलेगा तो डालटनगंज से आलोक चौरसिया और भवनाथपुर से भानु प्रताप शाही का टिकट कन्फर्म हो गया। अब गढ़वा ही एक ऐसी सीट बच रही थी जहां से भाजपा किसी अगड़ी जाति का उम्मीदवार दे सकता था। लेकिन भवनाथपुर में राजपूत जाति का कोटा भर जाने के बाद गढ़वा से किसी ब्राह्मण को ही टिकट देना पार्टी के लिए मजबूरी बन गयी। और टिकट की आस में लोकसभा चुनाव के समय राजद छोड़ भाजपा आए गिरिनाथ हलाल हो गये।
 


ब्राह्मण और राजपूत कार्ड की अहम भूमिका
पहले ही स्पष्ट है कि पलामू में अगड़ी जातियों में ब्राह्मण और राजपूत अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन सुचित्रा मिश्रा की हत्या के आरोपी शशिभूषण मेहता को पांकी से टिकट देने के बाद से ब्राह्मणों में आक्रोश दिखायी दे रहा है। चुनाव में सुचित्रा मिश्रा के पुत्रों को शामिल करने पर ब्राह्मणों के और भड़कने की संभावना है। इस कारण भी गढ़वा से भाजपा के लिए किसी ब्राह्मण को टिकट देना जरूरी था।